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नमस्कारस्तवः
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सर्वभावमयं भव्यं मन्त्रं सर्वरसात्मकम्।
सर्वगुणास्पदं मन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।६।। सभी भावों से युक्त, सभी रसों से निर्मित सभी गुणों का एकमात्र स्थान यह मन्त्र भव्य (सुन्दर) है, अतः इस नमस्कार मन्त्र का सदा स्मरण कर।।६।।
सर्वपुण्यकरं मन्त्रं सर्वपापहरं तथा।
महाप्रभावसंयुक्तं नमस्कारं सदा स्मर।।७।। सभी पापों को नाश करनेवाला, सभी पुण्यों को करनेवाला (बढाने) वाला महाप्रभाव से युक्त सतत इस नमस्कार मन्त्र को स्मरण कर।।७।।
तन्त्रसारं महामन्त्रं सर्वकर्मकरं तथा।
सर्वसिद्धिप्रदं लोके नमस्कारं सदा स्मर।।८।। यह महामन्त्र सभी शास्त्रों का सार है सभी (शुभ) कर्मों का कारक है, लोक में सभी प्रकार की सिद्धियों को देनेवाला है अतः तुम इस नमस्कार मन्त्र का स्मरण करो।।८।।
सर्वाभीष्टप्रदं मन्त्रं सर्वाभ्युदयसाधकम्।
महाप्रभावकं भावान्नमस्कारं सदा स्मर।।९।। मनोवाञ्छित फल देनेवाला, सभी अभ्युदयों का साधक यह अत्यन्त प्रभावशाली मन्त्र है अतः भाव से सदा नमस्कार का स्मरण कर।।९।।
पूर्वसारयुतं मन्त्रं भाषितं श्रीजिनैश्वरैः।
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु नमस्कारं सदा स्मर।।१०।। श्री जिनेश्वर के द्वारा कहा गया यह मन्त्र (चौदह) पूर्व का सार है। यह तीनों लोकों में विख्यात है इसलिए नमस्कार का स्मरण कर।।१०।।
माहात्म्यं खलु विज्ञाय पूर्वाचार्यैः प्रदर्शितम्।
दृढभावैर्महाभक्त्या नमस्कारं सदा स्मर।।११।। पूर्वाचार्यों के द्वारा कहे गये इसकी महिमा को जानकर दृढभाव से अत्यन्त श्रद्धापूर्वक नमस्कार का स्मरण कर।।११।।