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नमस्कारस्तुतिः
विघ्नानां प्रतिषेधाय गीयमानो मुमुक्षुभिः।
नयत्येव द्रुतं सर्वान्नमस्कारोऽचलं पदम्।।३६।। विघ्नों को रोकने के लिये मुमुक्षुओं के द्वारा स्तुति करने से शीघ्र ही यह नमस्कार महामन्त्र अचलपद (मोक्ष) देता है।।३६।।
मोक्षमार्गे तु योगीन्द्रैर्महाध्वान्तोपशान्तये।
अविद्यातिमिरार्कोऽयं नमस्कारोऽवलम्ब्यते।।३७।। योगी लोग मोक्षमार्ग में अज्ञानतारूप अन्धकार को दूर करने के लिए अविद्यारूप अन्धकार को दूर करने में सूर्य के समान इस नमस्कार महामन्त्र का अवलम्ब (सहारा) लेते हैं।।३७।।
परीषहोपसर्गेषु मनःस्थैर्यं ददाति यः।
सर्वभीतिहरो ध्येयो नमस्कारो विचक्षणैः।।३८।। परिषह या उपसर्ग आने पर जो मन को चलायमान नहीं होने देता तथा जो सभी प्रकार के भय को दूर करनेवाला है ऐसा नमस्कार मन्त्र का ध्यान विद्वानों को करना चाहिए।।३८।।
मोक्षमार्गे प्रवृत्तानां सर्वविघ्ननिवारकः।
सप्रभावो हि मन्त्रोऽयं नमस्कारो विलक्षणः।।३९।। मोक्षमार्ग में प्रवृत्त साधक की सभी बाधाओं को दूर करनेवाला यह प्रभावशाली मन्त्र; ये नमस्कार (वास्तव में) विलक्षण है।।३९।।।
आर्तरौद्रविनाशाय धर्मशुक्लसुसिध्दये।
धार्यते हृदये भव्यैर्नमस्कारो निरन्तरम्।।४०।। आर्तध्यान तथा रौद्र ध्यान के नाश तथा धर्मध्यान-शुक्लध्यान की सिद्धि के लिए भव्य लोग निरन्तर इस नमस्कार को हृदय में रखते हैं; अहर्निश उसका ध्यान करते हैं।।४।।
जिनशासनसारोऽयं भव्यजीवैरुपास्यते। विभूतयेऽपवर्गस्य नमस्कारो यथाविधि।।४१।।