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जिनागमेषु सर्वेषु व्यापकोऽयं सनातनः । ध्येयतमो हि सम्प्रोक्तो नमस्कारो बहुश्रुतैः ।।६।।
सभी जिनागमों में यह सनातन नमस्कार मन्त्र व्याप्त है तथा शास्त्रज्ञों ने इसे ध्येयतम (ध्येय मन्त्रों में सर्वोत्कृष्ट ) कहा है । । ६ । ।
एको हि सुभटो लोके कामक्रोधविदारकः । मोक्षलक्ष्मीजये शक्तो नमस्कारो निरीक्ष्यते ॥ ७ ॥
योगकल्पलता
इस लोक में कामक्रोध रूप शत्रुओं को नाश करनेवाला तथा मोक्षलक्ष्मी को जीतने में समर्थ एक ही योद्धा (सुभट) नमस्कार महामन्त्र देखा जाता हैं।।७।।
देवगुरुपदैः सम्यग् रागद्वेषविनाशनात् ।
प्रदत्ते समताधर्मं नमस्कारो विशेषतः ।।८।।
देवगुरु की कृपा से तथा रागद्वेष का समूल नाश होने से यह मन्त्र विशेषतः समता प्रदान करता है ।।८।।
रत्नत्रयात्मको ज्ञेयो मन्त्रस्तत्त्वत्रयात्मकः । त्रिसन्ध्यं सेवनीयश्च नमस्कारोऽतिप्रेमतः ।।९।।
इस मन्त्र को रत्नत्रय ( सम्यग् ज्ञान - दर्शन - चारित्र) का एकाकार रूप तथा तत्त्वत्रय (देव, गुरु, धर्म) स्वरूप जानना चाहिए। यह नमस्कार मन्त्र प्रेम से (शुद्धभाव से) तीनों सन्ध्या (प्रातः, दिवा, सायंकाल) में उपासना करने योग्य है । । ९॥
जिनबोधिप्रदानेन दत्ते मुक्तिश्रियं क्षणात् ।
मुक्तकरो निसर्गेण नमस्कारो न निष्फलः । ।।१०।।
यह नमस्कार महामन्त्र स्वभाव से ही मुक्त करनेवाला होता है। इसकी उपासना कभी निष्फल नहीं होती; जिनवचन के अनुसार सम्यक्त्व आजाने से तुरंत ही मोक्षश्री को देनेवाला महामन्त्र है ।।१०।।
शरण्यैर्मङ्गलैश्चैव पदैर्लोकोत्तमैस्तथा ।
अद्वितीयस्तु लोकेऽस्मिन्नमस्कारो व्यवस्थितः।।११।।
शरणागत की रक्षा करने से, मङ्गल करने से तथा लोक में उत्तमस्थान होने
से यह नमस्कार महामन्त्र इस लोक में अद्वितीय है ।। ११ ।।