SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ m x 3 w g v in संयोग से दस सांयोगिक भाव बनते हैं। वे इस तरह१. औपशमिक-क्षायिक औपशमिक-क्षायोपशमिक औपशमिक-औदयिक औपशमिक-पारिणामिक क्षायिक-क्षायोपशमिक क्षायिक-औदयिक क्षायिक-पारिणामिक क्षायोपशमिक-औदयिक ९. क्षायोपशमिक-पारिणामिक १०. औदयिक-पारिणामिक। पांच में से तीन भावों के संयोग से दस सांयोगिक भाव बनते हैं। १. औपशमिक-क्षायिक क्षायोपशमिक २. औपशमिक-क्षायिक-औदयिक औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिक औपशमिक-क्षायोपशमिक-औदयिक औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक औपशमिक-औदयिक-पारिणामिक क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक ८. क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक ९. क्षायिक-औदयिक-पारिणामिक १०. क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक पांच में से चार भावों के संयोग से पांच सांयोगिक भाव बनते हैं १. औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक २. औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक ३. औपशमिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक क्षायिक-औपशमिक-औदयिक-पारिणामिक ५. क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक पांच संयोग से एक ही भाव बनता है। औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक। एक संयोग नहीं होता है। अतः एक संयोग से कोई भंग नहीं बनता। संयोग दो भावों के मिलने पर ही बनता है। x i w g नौवां जीवद्वार छह द्रव्यों में जीवास्तिकाय जीव है, शेष द्रव्य जड है।
SR No.009265
Book TitleSyadvada Pushpakalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitranandi,
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages218
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy