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________________ द्रव्यार्थिक से विपरीत है। यह उत्पाद और व्यय को प्रधान करता है। जैसे एक समय में द्रव्य में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य तीनों रहते हैं। ६) सद् द्रव्यार्थिक : (भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक) भेद कल्पना के साथ अपने अपने गुण को ग्रहण करनेवाली दृष्टि सद्व्यार्थिक नय है। जैसे ज्ञान-दर्शन वगैरह आत्मा के गुण है 'आत्मा के गुण' कहने पर आत्मा और गण में भेद प्रतीत होता है। गण का ग्रहण होने से अशद्धता आती है, क्योंकि गण पर्याय रूप है। यहां इसे सद्व्यार्थिक कहा है लेकिन नयचक्रालाप पद्धति में उसे भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक कहा गया है। ७) वक्तव्य द्रव्यार्थिक : वस्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से कथन का विषय बनती है। यह वक्तव्य द्रव्यार्थिक नय है। जैसे अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव यह चार रूप की अपेक्षा से द्रव्य है। ८) अन्वय द्रव्यार्थिक : गुण और पर्याय द्रव्य में अन्वित रहते है। द्रव्य, गुणपर्याय से अन्वित है। गुणपर्याय द्रव्य से अन्वित है। जो अन्वित होता है वह स्वभाव हो जाता है। अतः गुणपर्याय द्रव्य के स्वभाव है यह प्रतीति अन्वय द्रव्यार्थिक नय की है। सर्व द्रव्य में रहनेवाली मूल सत्ता एक ही होती है। ९) परद्रव्याग्राहक द्रव्यार्थिक : वस्तु अपने धर्म को छोडकर अन्य धर्म से युक्त नहीं होती यह ग्रहण करनेवाली दृष्टि परद्रव्याग्राहक द्रव्यार्थिक नय है। जैसे अन्य वस्तु के द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से प्रस्तुत वस्तु नहीं है। १०) परमभाव ग्राहक द्रव्यार्थिक : गुण और गुणि को एक करके वस्तु में रहे उत्कृष्ट परम भाव को ग्रहण करनेवाली दृष्टि परमभाव ग्राहक द्रव्यार्थिक नय है। उदाहरण : ज्ञान गण को लेकर 'आत्मा ज्ञान स्वरूप चिद्धन है। यह प्रतीति। इस प्रतीति में आत्मा के अनेक स्वभाव में से एक ज्ञान नामका परम स्वभाव गृहीत हुआ है। प्रधानरूप से पर्याय को ग्रहण करनेवाली दृष्टि को पर्यायार्थिक नय कहते है। यह नय उत्पाद और विनाश स्वरूप पर्याय को ही ग्रहण करता है। की उपेक्षा करता है। पयार्थिक नय के छहः भेद है१) अनादि नित्य पर्यायार्थिक जैसे मेरु वगैरह पदल के पर्याय नित्य है। २) सादि नित्यपर्यायार्थिक : जैसे सिद्ध जीव रूप पर्याय नित्य है। ३) अनित्यशुद्ध पर्यायार्थिक : सत्ता को गौण करके केवल उत्पत्ति और विनाश को ग्रहण करनेवाला नय अनित्य शुद्धपर्यायार्थिक नय है। जैसे समय समय पर पर्याय उत्पन्न होते हैं और नाश होते हैं। ४) नित्यशुद्ध पर्यायार्थिक : ध्रुवांश यानि कि सत्ता को सापेक्ष रहकर उत्पाद और विनाश रूप पर्याय को ग्रहण करनेवाली दृष्टि नित्य शुद्धपर्यायार्थिक नय है। जैसे द्रव्य में एक ही समय में उत्पत्ति, स्थिति और विनाश तीनों रहते है। यहां स्थिति को गौण नहीं किया है। ५) कर्मोपाधि निरपेक्ष स्वभाव नित्याशुद्ध पर्यायार्थिक : जैसे संसारी जीव के पर्याय सिद्ध जीव के समान है। ६) कर्मोपाधि सापेक्ष स्वभाव अनित्याशुद्ध पर्यायार्थिक : जैसे संसारी जीव को जन्म मरण है। इस प्रकार पर्यायार्थिक नय है। नय के भेद नैगम, संग्रह, व्यवहार, और ऋजुसूत्र यह चार द्रव्यार्थिक नय के भेद है। पर्यायार्थिक नय शब्द, समभिरूढ और एवंभूत यह तीन प्रकारका है। जो नय द्रव्य को प्रधान रूप में ग्रहण करता है वह द्रव्यार्थिक नय है। जो नय पर्याय को प्रधान रूप में ग्रहण करता है वह पर्यायार्थिक नय है। द्रव्यार्थिक या पर्यायार्थिक को द्रव्यास्तिक या
SR No.009265
Book TitleSyadvada Pushpakalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitranandi,
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages218
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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