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प्रकाशकीय
परमात्मा श्री महावीर देवने जगत को दो अनमोल भेट दी - अहिंसा और अनेकान्त । अहिंसा और अनेकान्त के सहारे आत्मध्यान की साधना भगवान के उपदेश का केन्द्रबिन्दु है । भगवान का यह उपदेश आगम और शास्त्रो के माध्यम से प्रवाहित हुआ । आगम और शास्त्र जैन धर्म की सिर्फ धरोहर ही नहीं अनमोल विरासत भी है। परमात्मा के निर्वाण के एक हजार साल बाद आगम और शास्त्र लिखे गये । शुरु में ताडपत्र के उपर बाद में कागज के उपर शास्त्र लिखे जाते थे। आज हमारे पास १५००० शास्त्रो की दस लाख हाथ से लिखि हुइ प्रतियाँ है । मुद्रण युग शुरु होने पर आगम और शास्त्र छपने लगे।
लेखन और मुद्रण के दौरान आगम और शास्त्रो में मानव सहज स्वभाववश गलतियों का प्रवेश हो गया । आज बहुतांश शास्त्र मुद्रित रूप में उपलब्ध है। जिनका संशोधन अभी भी बाकी है । जो सिर्फ प्राचीन ताडपत्र के उपर लिखि गई हस्तप्रतो के आधार पर हो सकता है। श्रुतभवन इस के मुख्य आधार पर संशोधन कार्य करने का लक्ष्य रखता है। संशोधन कार्य के लिये हमारी संचालन समितिने विशेषज्ञ पण्डितो को नियुक्त किया है जो ट्रेनींग पाकर पू. मुनिश्री वैराग्यरति वि.म. एवं पू. मुनिश्री प्रशमरतिवि.म. के दिशादर्शन अनुसार इस कार्य में संलग्न है । इस कार्य में अनेक समुदाय के विशेषज्ञ आचार्यभगवंतो का मार्गदर्शन और सहाय प्राप्त हो रहे हैं । कार्य की विशालता, महत्ता और उपयोगिता को देखते हुए आगामी समय में पण्डितों की संख्या बढाने का इरादा है।
इसी के साथ दूसरा आयोजन है आज तक जो शास्त्र मुद्रित रूप में उपलब्ध नहीं है उनका संशोधन करके प्रकाशन करना । इन शास्त्र को दो श्रेणि में बाँटा जा सकता है १ साधु उपयोगी, २ गृहस्थ उपयोगी । गृहस्थ उपयोगी शास्त्र का सरल सारांश करके अंग्रेजी, हिन्दी और गुजराती भाषा में प्रस्तुत किया जायेगा।
प्रस्तुत कृति सर्वसिद्धांतस्तवः, ४५ आगमो की स्तुति रूप है ।
श्रुतभवन संशोधन केन्द्र का प्रथम प्रकाशन आगमस्तुति स्वरूप मंगल से हो रहा है यह बड़े आनन्द का विषय है। श्रुतभवन संशोधन केन्द्र की समस्त गतिविधियों के मुख्य आधार स्तंभ मांगरोळ (गुजरात) निवासी श्री चंद्रकलाबेन सुंदरलाल शेठ परिवार एवं भाईश्री (ईन्टरनेशनल जैन फाऊन्डेशन, मुंबई) के हम सदैव ऋणी है । दिनांक ३०-७-११
भरतभाई शाह मानद अध्यक्ष