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जयवती है।
(१५) ज्ञाताधर्मकथा में साढ़े तीन करोड कथा है । यह सूत्र उत्क्षिप्त आदि कथानकों से रम्य है । यह सूत्र कल्याण का कारण हो ।
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(१६) भगवान श्री महावीर के प्रधान दस श्रावक थे । उनका जीवनवृत्त उपासकदशा में है । यह अंग मुझे हमेशा विशद ज्ञान प्रदान करें । (१७) गौतम इत्यादि महाऋषि एवं पद्मावती इत्यादि महासती जिन्होंने संसार का अंत कर मुक्ति प्राप्त की, उनके सुकृतों का वर्णन अन्तकृद्दशा सूत्र में है | विद्वज्जनो को अनुरोध है कि वे इस सूत्र का स्मरण करें ।
(१८) अनुत्तरोपपातिकदशा सूत्र में चारित्रादि गुण सम्पदा से श्रेष्ठ जालि याने कि नमि वगैरह मुनि भगवन्त की साधना का वर्णन है, जिसके बल पे उन्हें अनुत्तर विमान की लक्ष्मी प्राप्त हुई । अनुत्तरोपपातिकदशा का में आश्रय करता हूँ |
(१९) प्रश्नव्याकरणदशा दसवा अंग है । इसमें आश्रव और संवर के स्वरूप का निर्णय किया गया है । अंगुष्ठ, दीप, जल इत्यादि में अवतरण करने वाली देवताओं का वर्णन इस सूत्र में पाया जाता है । ऐसी महिमावन्त देवताओं की साधक विद्या इस सूत्र में है । यह सूत्र हमें सुख प्रदान करें ।
(२०) विपाकसूत्र में बीस अध्ययन है । इस सूत्र में मृगापुत्र, सुबाहु इत्यादि उदाहरण द्वारा भव्यजीवों को सुख और दुःख देनेवाले शुभ - अशुभ कर्म के विपाक अर्थात् फल परिणाम की शिक्षा दी गई है । विपाकसूत्र हमारा कल्याण करें ।
यह (वर्तमान में उपलब्ध) ग्यारह अंग श्री सुधर्मा स्वामी विरचित
१. भगवती के १९२५ उद्देशक गिने जाते है ।
२. उत्क्षिप्तज्ञात ज्ञाताधर्मकथा का पहला अध्ययन है ।