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परिशिष्ट-५, पाठान्तराणि
२४५
का.
स्थल:
पत्राङ्क
पाठान्तर
ह. पा.
पत्राङ्क
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८४ ८४ ८४ ८४
टी. टी. टी. वि.
टी.अं. ३ ४
७१-B ७१-B ७१-B
م
ho ho ho ho hos tus
१९-B १९-B १९-B ७६-B (दे) ६५-A (दे) ६५-A (दे)
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७१-B ७१-B ७१-B ७१-B
१९-B १९-B २६-B (जै)
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ho ho ho ho he he he rots
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७३-A ७३-A
रूपबल फल्गुः परिहार्यः । असद... नास्ति प्रयोजनं कार्यं न विद्यते इत्यधिकम् श्च्यु तं । समुद्भवशरीर.... समुद्भवस्य शरीर.... ७२ तमं पत्रं नास्ति पीतक । शरीरकर्माश्रयः । शरीरकर्माश्रयः । को मदा..... अपि तु नास्त्येव इति अधिकम् नित्यं इति कै सम्मतः पाठः परिशीलनीयः-संस्कर्तव्यः श्रोत्र शिवाणो घ्राणसम्भवम् (अभि. ६३२) वता....कृम्या...इत्यन्तः पाठः भ्रष्टः अवता (?) शुक्र
१९-B २०-A (जै) २०-A (जै) ६५-A (दे) ६५-A (दे)
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४-A
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ho do ho he
७३-A २०-A ७३-A ७३-A
२०-A ७३-A
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२०-A ७३-A ६-B ६-B ४-A
वृत्ते
२०-A १७-A (दे) १७-A (दे)
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७४-A ७४-A ६-B
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४-A ४-A
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८७ ८८ ८८
tos tos tus ho ho
१७-A (दे) २०-A २०-A १७-A (दे) ६५-A ६५-A ६५-A २०-B २०-B
अव. टी. टी.
नास्ति अवता (?) नोऽप्यथ इति पाठः नर इत्यधिकम् शूचिकावेदना समुपपन्नो तरुणबलो सुसंस्का ..... राधनसामर्थ्याद् भावः सत्ता यस्य । कथं पुनरभावो बलस्येत्याहबुद्ध्यगम्यमेतदिति..... कथं पुनरभावो बलस्येत्याहबुद्धिगम्यमेतदिति-इति भाव्यम् (?) मरणप्राणे कादि नाति नास्ति ।
४-A ७४-B ७४-B
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७-A २८-A-(जै) २८-A-(जै) ७-A
१७-A २०-B २०-B १७-B (दे)
८९ ८९
वि.
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