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________________ 11 स्वाति अने मातानुं नाम वात्सीगोत्रीय उमा हतुं. पोते आर्य शांतिश्रेणिकथी नीकळेली उच्चनागर शाखा[?]मां दीक्षित हता. ए श्रीउमास्वाति-वाचकश्रीए गुरुपरम्पराथी प्राप्त करेला आर्हत-उपदेशने भली रीते हृदयमां धारण करीने, तथा दुरागमो (मिथ्याशास्त्रो) द्वारा हतबुद्धि दुःखित लोकने देखीने प्राणीओना उपर अनुकम्पाथी प्रेराई तत्त्वार्थाधिगम नामनुं स्पष्ट (अर्थनी स्पष्टतावालुं) रेशास्त्र विहार करतां कुसुमपुर (बिहार देशना पट्टना-पाटलीपुर) नगरमां रच्यु." आमां यद्यपि एमना समयनो चोक्कस निर्णय थई शकतो नथी, छतां एटलुं चोक्कस छे के एओश्री पूर्वधरोना समयमां थयेला चतुर्दशपूर्वधर होई विक्रमनी पांचमी-छठी शताब्दीथी पहेला थयेला अति प्राचीन आचार्य छे. पोते ५०० ग्रन्थ-प्रकरणना प्रणेता हता. विवरणकार श्रीहरिभद्रसूरिनो समय विक्रमनी १२मी सदीनो उत्तरार्द्ध सुनिश्चित छे. कारण के, खूद टीकाकारे प्रशस्तिमां “वि० सं० ११८५मां अणहिलपुर पाटणनी अंदर महाराजा जयसिंहदेवना राजकालमां आ टीका रची छे." एवं स्पष्ट उल्लेख्युं छे (प्रशस्तिश्लोक-४). आ टीका सिवाय प्रस्तुत वृत्तिकारना समये एक बृहद्वृत्ति हती एटलुं चोक्कस मालूम पडे छे. ए बृहद्वृत्तिने अनुसरीने ज आ वृत्ति रचाया- प्रशस्तिमां स्पष्ट उल्लेखेतुं छे (प्रशस्तिश्लोक-३). ए बृहद्वृत्ति अद्यापि उपलब्ध थई शकी नथी. टीकाकार १४४४ बौद्ध साधुओने समळीरूपे आकर्षणार अने तेना प्रायश्चित्त-निमित्त (?) १४४४ ग्रन्थोना प्रणेता, दरेक ग्रन्थांते 'विरह' शब्द योजनारा 'याकिनीमहत्तरासूनु'ना उपनामथी प्रसिद्ध 'श्रीमद् हरिभद्रसूरि' नहीं, पण बृहद्गच्छीय 'श्रीमान् देवसूरि'ना सन्तानीय श्रीहरिभद्रसूरि छे (प्रशस्तिश्लोक-१). ग्रन्थसंशोधनकार्य माटे आगमाद्धोरक आगमव्याख्याप्रज्ञ साक्षरशिरोमणि आचार्यवर श्रीमद् आनन्दसागरजी सूरीश्वर - के जेनी कृपाछाया नीचे ८८ अंको प्रसिद्ध करवा शक्तिमान थया छीए तेमना - हुं तथा श्रीमान् ट्रस्टीवर्यो अहर्निश ऋणी छीए. पूर्वे मूल अवचूरी अने टीकासहित आ ग्रन्थ वि० सं० १९६६मां श्रीजैनधर्मप्रसारक सभा, भावनगर तरफथी तेम ज टीका अवचूरीसहितनुं भाषान्तर पण ए ज संस्था तरफथी वि० सं० १९८८मां प्रसिद्ध थयुं हतुं. भावनगर संस्थाए छपावेल टीका श्रीहरिभद्रजीवाली टीका छे, तत्त्वार्थसूत्र-सिद्धसेनीयटीका अंक ७६ शेठ दे० लानी, पत्रांक ३२६-२७. माताना 'उमा' अने पिताना 'स्वाति' उपरथी तेओश्रीनुं नाम 'उमास्वाति'. विशेष इच्छावालाए दे० ला० जैन पुस्तकोद्धार फंडना छपावेला अंक ७६, तत्त्वार्थसूत्रना बीजा भागनो अंग्रेजी प्रवेशक (इंट्रोडक्शन) वगेरे जोवू. १. “थेरे अज्जसंतिसेणिए माढरसगुत्ते".... "थेरेहितो णं अज्जसंतिसेणिएहितो माढरसगुत्तेहितो एत्थ णं 'उच्चानागरी साहा' निग्गया" । कल्पसूत्रस्थविरावलि, शेठ दे० ला० जैन पुस्तकोद्धार फंड, अंक ८२, कल्पसूत्र-बारसा सचित्र, पत्राङ्क ६७. २. “तत्त्वार्थाधिगमाख्यं शास्त्रं भव्यसत्त्वानुकम्पया विरचितं स्फुटार्थमुमास्वातिनेति' । दे० ला०नो अंक ७६ तत्त्वार्थसूत्र बीजो भाग, पत्राङ्क ३२७.
SR No.009263
Book TitlePrasharamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorHaribhadrasuri, Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages333
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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