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संपादकीय
प्रति परिचयः
मनःस्थिरीकरण प्रकरण का संपादन तीन प्रतियों के आधार पर हुआ है। हमें तीनों प्रतियों की प्रतिछाया (झेरोक्षकोपी) ही उपलब्ध हुई है।
प्रत ए- यह संज्ञा पाटण के भण्डार की ताडपत्रीय प्रति की है। मूलतः संघवी पाडा के भंडार की यह प्रत वर्तमान में श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानभंडार में विद्यमान है। (डाबडा नं.१३४/१) पूज्य मुनिश्री जंबूविजयजी म. सा. के डीवीडी सेट में इस प्रत की कोपी है (डीवीडी नं.५२ पातासंघवी १३४/१)। पूज्य आ.श्री मुनिचंद्रसू.म की कृपा से यह कोपी उपलब्ध हुई है। इस प्रति के कुल पत्र १६+१७८ हैं। प्रत्येक पत्र में ५ पंक्तियां एवं प्रत्येक पंक्ति में ५८ अक्षर है। हमें प्रति की प्रतिछाया (झेरोक्षकोपी) ही उपलब्ध हुई है, अतः पत्र का माप एवं प्रत की स्थिति के विषय में कहने के लिये अक्षम है। प्रारंभ के १६ पत्र में मनःस्थिरीकरण प्रकरण मूल है उसके बाद पत्र १ से १७८ तक टीका लिखी गई है। पत्र क्रमांक ५९+६० तथा ७८+७९ एकत्र है। पत्र क्रमांक १३० दो बार लिखा है। पत्र क्रमांक ७५, १६९ का पुनरावर्तन हुआ है। प्रत पूर्ण है। इस प्रति के अंत में ग्रंथ लिखानेवाले की प्रशस्ति नहीं है। अतः ग्रन्थ लेखन का संवत् प्रति में नहीं दिया गया। अक्षर सुन्दर है साथ ही काफी शुद्ध है। इस प्रत के ज्यादातर पत्र स्पष्ट एवं पढने योग्य है और कुछ इतने अस्पष्ट काले धब्बे वाले है कि जिसे पढ़ा नहीं जाता। सम्पादन के लिए मुख्य रूप से इस ताडपत्रीय प्रत का ही उपयोग किया है।
प्रत बी- यह संज्ञा पू.कांतिवि.शास्त्रसंग्रह, वडोदरा स्थित कागज की हस्तप्रत की है। (नं. २०५५) इसकी प्रतिछाया (झेरोक्षकोपी) पू.मुनिश्री सर्वोदयसागरजी के पास थी और पू.आ.श्री कलाप्रभसागरसू.म.सा. की कृपा से यह कोपी उपलब्ध हुई है। इसके मूलपत्र ५३ हैं। प्रत्येक पत्र में १४ पंक्तियां एवं प्रत्येक पंक्ति में ५५ अक्षर है। हमें प्रति की प्रतिछाया (झेरोक्षकोपी) ही उपलब्ध हुई है, अतः पत्र का माप एवं प्रत की स्थिति के विषय में कहने के लिये अक्षम है। लेखनकाल वि.सं. १९७० है। प्रत के अंत में लेखक पुष्पिका इस प्रकार है। इदं पुस्तकं श्रीमदणहिल्लपुरपत्तनस्थसंघवीपाटकचित्कोशगत-ताडपत्रपुस्तकोपरितः संवत् १९७० वर्षे चैत्रकृष्णनवम्यां मन्दवासरे पत्तनवास्तव्य-श्रीमाळीज्ञातीय-लक्ष्मीशंकरात्मजेन गोवर्धनेन त्रिवेदिना प्रवर्तकश्रीमत्कान्तिविजयमुनिकृते लिखितम्।। स्पष्ट है कि यह प्रत अर्वाचीन है और प्रत ए के कुल की ही है। प्रत पूर्ण है। यह प्रत पाटण के भण्डार की ताडपत्रीय प्रति की अनुकृति है। अतः पाटण के भण्डार की ताडपत्रीय प्रति की तरह इस में प्रथम मूल स्वतंत्र रूप में लिखा गया है। मनःस्थिरीकरण प्रकरण मूल के साथ इस प्रत में आ.श्री महेंद्रसिंहसू.म. रचित आयुःसारसंग्रह नामक लघुकृति भी है। इसका क्रमांक २०५६ है।
__ प्रत सी- यह संज्ञा आ.श्रीवि.कमलसू.जैनहस्तलिखितपुस्तकोद्धारफंड, जैनानन्दपुस्तकालय,सुरत स्थित कागज की हस्तप्रत की है। इसकी प्रतिछाया (झेरोक्षकोपी) पू.आ.श्री वि.नेमिसू.म.सा.के पू.आ.श्री वि.सोमचंद्रसू.म.सा. की कृपा से उपलब्ध हुई है। इसके मूलपत्र ४४ हैं। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां एवं