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________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् १३१ छेहलइ अंतमुहूर्ति जे तीवारइं आवता भवनूं आऊखुं बांधई तिवारइं आठइ कर्मनउ बंध हुइ। अनेरी वेला समइ समइ सात कर्म बंधइ। इम अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, बेंद्रिय, केंद्रिय, चउरिद्रिय, पंचेंद्रिय असंज्ञिया तिर्यंच एतला जीव जे वारई आवता भवनुं आऊ बांधई तिवारई आठ कर्म बांधइ, अनेरी वेला सदैव समइ समइ सात कर्म बांधइ। मनुष्य प्रमत्तगुणठाणा लगइ आऊखाबंधवेलाई आठ कर्म बांधइ अनेरी वेलां सदैव समइ समइ सात कर्म बांधइ। पुण एतलुं विशेष मिश्रगुणठाणई जीव मरइ नही ए स्वभाव, तिहां आऊखं पणि न बांधइ सातइजि कर्म बांधइ। निवृत्तिबादर, अनिवृत्ति बादर ए बिहु गुणठाणे आऊखं वर्जी बीजां सातकर्म बांधइ। सूक्ष्मसम्पराय गुणठाणइ आऊखुं अनइ मोहनीय टाली बीजां छ कर्म बांधइ। पुण उपशांतमोह, क्षीणमोह, सजोगि एहे त्रिहु गुणठाणे एक सातावेदनीयजि कर्म बांधइ, बीजउं एकइ न बांधई। अयोगि गुणठाणइ एकू कर्म न बांधई। देव अनइ नारकी छेहल छए मासे जिवारइं परलोक योग्य आऊखं बांधई तिवारइं आठ कर्म बांधई बीजी बीजी परि सदैव सातजि कर्म समइ समइ बांधई। इम तेरे स्थानके प्रकृतिमूलबंधविचारः। हव ए आठकर्मनी उत्तरप्रकृति बांधवानउं विचार लिखीइ छइ। ज्ञानावरणीय कर्मि पांच उत्तर प्रकृतिमि(म)तिज्ञानावरण १ श्रुतज्ञानावरण २ अवि(व)धिज्ञानावरण ३ मनःपर्ययज्ञानावरण ४ केवलज्ञानावरण ५। दर्शनावरणीय नवभेद - चक्षुर्दर्शनावरण १ अचक्षुर्दर्शनावरण २ अवि(व)धि दर्शनावरण ३ केवलदर्शनावरण ४ निद्रा ५ निद्रानिद्रा ६ प्रचला ७ प्रचलाप्रचला ८ स्त्यानर्द्धि ९। एवं नवविध दर्शनावरणीय। वेदनीयना बि भेद सातावेदनीय १ असातावेदनीय २। मोहनीयना अट्ठावीस भेद मिथ्यात्व १ मिश्र २ पुद्गलमय सम्यक्त्व ३, अनंतानुबंधिया क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४, प्रत्याख्याना क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४, अप्रत्याख्याना क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ज्वलन क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ एवं कषाय १६। उत्तर प्रकृति ९। हास्य २० रति २१ अरति २२ शोक २३ भय २४ जुगुप्सा २५ पुरुषवेद २६ स्त्रीवेद २७ नपुंसकवेद २८ ए अट्ठावीस भेदमांहि छव्वीसजि प्रकृति बांधइ। जेह भणी सम्यक्त्व अनइ मिश्र जूआं न बांधइ। मूलि मिथ्यात्वजिं एक बांधई। तेमांहि केतलाई चोखा पुद्गल सम्यक्त्वरूप थाई। तेहजि माहिला अर्द्ध चोखा केतला पुद्गल मिश्ररूप थाई तेह भणी एह बिहुनुं जूओ बंध न हुई। आऊखुं कर्म चिहुं भेदे हुई। देव- आऊखुं १ तिर्यंचनुं (आऊखु २) मनुष्यनउं आऊखु ३ नरकनु आऊखु ४। नामकर्मना सातसट्ठि भेद। मनुष्यगति १ देवगति २ नरकगति ३ तिर्यंचगति ४, एकेंद्रियजाति ५ बेंद्रियजाति ६ तेंद्रियजाति ७ चउरिद्रिय(जाति) ८ पंचेंद्रियजाति ९ औदारिकशरीर १० वैक्रियशरीर ११ आहारकशरीर १२ तैजस शरीर १३ कार्मण(सरीर) १४ औदारिकशरीरना उपांग १५ वैक्रियशरीरनु उपांग १६ आहारकशरीरनु उपांग १७ पनर बंधन अनइ पाच संघातन वर्ण-गंध-रस-रस-स्पर्शना सोल भेद। ए छत्रीस भेद सइरजिमांहि आव्या जूआ न गणीअइ। वज्रऋषभनाराच १८ ऋषभनाराच १९ नाराच २० अर्द्धनाराच २१ कीलिका २३ सेवा संघयण। समचतुरस्र संस्थान २४ न्यग्रोध परिमंडल (संस्थान) २५ सादि संस्थान २६ वामन संस्थान २७ कुब्ज संस्थान २८ हुंड संस्थान २९ एक वर्ण ३0 एक गंध ३१ एक रूप ३२ एक रस ३३ एक स्पर्श ३३ मनुष्यानुपूर्वी ३४ देवानुपूर्वी ३५ नरकानुपूर्वी ३६ तिर्यगानुपूर्वी ३७ शुभविहायोगति ३८ अशभविहायोगति ३९ पराघात ४० ऊसास ४१ आतप ४२ उद्योत ४३ अगुरुलघु ४४ तीर्थकरनाम ४५ निम ४६ उपघात ४७ त्रस ४८ बादर ४९ पर्याप्त ५० प्रत्येक ५१ स्थिर ५२ शुभ ५३ सुभग ५४ सुस्वर ५५
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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