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________________ १३४ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् कर्मबंध कारण। बीजउं कर्मबंधनउं कारण अविरति कहीअइ। तेहना १२ भेद । कर्ण १ चक्षुः २ नासिका ३ जिह्वा ४ स्पर्शन ५ रूप पांच इंद्रिय, छट्ठउं मननउ अनियंत्रण = मोकलउं मूकिवउं। अनइं पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेउकाय ३ वाउकाय ४ वनस्पतिकाय ५ त्रसकाय ६ ए छ जीवनउ विणास ए बारभेद अविरतिना कर्मबंधनउं कारण। त्रीजउं १६ कषाय ९ नो कषाय कर्मबंधनउं कारण। जे कषाय तीव्र परिणाम मरणि आवई निवर्तइ नही वरस दीस उत्कृष्टउं जावजीव रहई ते अनंतानुबंधिया कहीइं। तेहनइ उदइ सम्यक्त्व न लहई। तेहनइ उदइ मरनउ नरगिजि जाइ १। अप्रत्याख्यान कषाय ऊपना पूठिई जीवहुई च्यारिमास ऊपरि उत्कृष्टउं जां वरस रहइ। तेहनइ उदइ सम्यक्त्व लहइं पुण देशविरति श्रावकपणू न लहइं। तेहनइं उदइ मूओ तिर्यंचमांहि जाइं २। जे कषाय ऊपर्नु पनर दिहाडा ऊपरि उत्कृष्टउं ४ मास रहई ते प्रत्याख्यानावरण कषाय कहीइं। एहनइ उदय सम्यक्त्व देशविरति हुई पुण सर्वविरति चारित्र न हुई। तेहनइ उदयि मूओ मनुष्यगति लहई ३। जे कषाय ऊपनउ अंतर्मुहूर्त ऊपरि जां उत्कृष्टउ पनर दिहाडा लगइ रहइ ते संज्वलन कषाय कहीइ। तेहनइ उदयइ सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति लहई पुण कषायोदय रहित चारित्र न लहइ। तेहनइ उदयइ मूओ देवलोकि जाइं। मोक्षि न जाइ ४। ए च्यारइ क्रोधइ हुई ५ मानइ हुई लोभइ हुई। तेह भणी कषायशब्दई ए च्यारइ कहीइं। । ष्टांत लिखीइं छई। संज्वलनउं क्रोध पाणीमांहि लीहनी परि जाणिवउं। जिम पाणी मांहि लीह काढी तत्काल मिलइ तिम एहू कषाय तत्काल निवर्तइ। प्रत्याख्यानावरण क्रोध धूलिमांहि लीह सरीखें। जिम धूलिनी लीह वडीवार रहइ तिम एहू क्रोध मोउडउ फीटइ २। अप्रत्याख्यान क्रोध सूका तलावनी फाटी माटीनी रेखा सरिखउं। जिम ते रेखा वरस दीस मेघ वूठई जि भाजइ तिम एह क्रोध वरसदीसि भाजइ ३। अनंतानुबंधिया क्रोध पर्वतराइ सरीखउं। जिम ते विवर जावजीव रहई, तिम ए क्रोध जाव जीव लगइ रहइ ४। संज्वलन मान नेत्रनी लाकडी सरीखउं। जिम ते लाकडी सुखिइं नमाडीइं तिम एहवा अहंकारना धणी सुखिइं नमई १। प्रत्याख्यानउ काष्ट सरीखउं। जिम ते काष्ट चोपडण-तापादिके करी गाढउ दोहिलउ नमइ तिम एहनइ उदयि जीव कष्टइं नमइ २। अप्रत्याख्यानउ मान हाड सरीखउं। जिम सइरनु हाड चोपडिवउं सेकवउं चोपडा बांधवादिक उपायई करी गाढई कष्टइं नमइ तिम एहूनइ उदयि जीव गाढइ कष्टई नमई ३। अनंतानुबंधिउ मान पाषाणना थांभा सरीखउं। जिम ते थांभउ भावइ ते उपाय करउ पुण न नमइ तिम एहनइ उदयइ जीव भावइ तेवडे उपाये न नमइ ४। संज्वलन माया शस्त्रइ करी जे वांसनी छालि पडइ तेउ सरीखी। जिम ते छालि सूयाली भणी सुखिई पाधरी कराइ तिम एहनइ उदयइ सुखिइं हीयानी कुटिलता जाइ १। प्रत्याख्यानावरण माया- बलद जातओ मूतरइ ते गोमूत्रिका कहीइ -ते सरीखी। जिम तेहनउ वाकपण मउडउ फीटइ तिम एहनइ उदयइ जी वक्रता घणी अनइ दोहिली २। अप्रत्याख्यानी माया मीढा बोकडा अथवा मीढा बलदनां सीम सरीखी जिम तेहनी वक्रता गाढी हुइ अति गाढइ कष्टइ कालिंगडा बंधनादिक प्रयोगई फीटइ तिम ए माया जाणिवी ३। अनंतानुबंधिनी माया निवड वंसीआलिना मूल सरिखी। जिम ते मूलनी वक्रता गाढी हुइ आगिइं वलतां न वलइं। तिम ए माया किमइ न जाइ ४।। संज्वलन लोभ हलिद्दना राग सरिखउं। जिम लूगडइ हलिद्दनउ रंग तावडादिकनइ संयोगई सुखइं जाई। तिम एहू लोभ सुखई निवर्तई २। प्रत्याख्यानावरण लोभ दीवा गाडलानां ऊगण खंजण तेह सरीखु कहीइ। जिम ते लूगडइ लागउ गाढउ दोहिलङ फीटइ तिम एह दोहिलउ फीटई २। अप्रत्याख्याना लोभ नगरना चलाह कादव
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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