________________
मन:स्थिरीकरणप्रकरणम्
१२७
कायस्थिति बिभव; काल आश्री अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टी कायस्थिति सात आठ भव; काल आश्री त्रिणि पल्योपम सात पूर्वकोडि सहित। नारकी अनइ देव मांहि कायस्थिति हुइ नही। जेह भणी नारकी मरी वली लागट नारकी न थाई, देव मरी वली लागट देव न थाई। ए बिहु मांहि भवस्थितिजि हुइ जघन्य भवस्थिति दशवर्षसहस्र, उत्कृष्टी भवस्थिति तेत्रीस सागरोपम हुई। इति कायस्थिति तेरे थानके विचारी।
अथ संघयण विचारः। सरीरि जे हाडनउ बंधाण ते संघयण कहीइं। ते संघयण छइ ए प्रकारि हुइ वज्रऋषभनाराच (१ ऋषभनाराच) २ नाराच ३ अर्द्धनाराच ४ कीलिका ५ सेवार्त ६। जीणइ सइरि सर्व संधि हाड मर्कटबंधिमाहिमांहि बंधाण हुइ ऊपरि एक हाडनउ पाटउ हुइ, तेह ऊपरि बिहु हाडहुई वेधक खीली ते वज्रऋषभनाराच १। जिहां खीली न हई ते ऋषभ नाराच २। जिहां पाटउइ न हई ते नाराच ३। जिहां एकई पासई मर्कटबंध हुइ एकइ गमई न हुइ ते अर्द्धनाराच ४। जिहां मर्कटबंध न हुइ बिहुं हाड वेधक खीली मात्र हुइ ते कीलीका ५। जिहां हाड हाडिइं मिलिउंजि हुई ; कांई बंध न हुई ते सेवार्त ६।
संघयण कहीइ तेरे थानके विचारीइ छइ। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेउकाय ३ वाउकाय ४ वनस्पतिकाय ५ मांहि संघयण न हुई। जेह भणी तेहनइ सरीरि हाड न हुई। बेंद्रिय १ चेंद्रिय २ चउरिंद्रिय ३ असंज्ञियां तिर्यंच पंचेंद्रिय ४ अनइ एकज सेवा संघयण हुइ। संज्ञिया पंचेंद्रिय तिर्यंच अनइ मनुष्यनइ छइ संघयण हुई। नारकी अनइ देवहुई संघयण नही। जेह भणी तेहतणा सइर मांस-अस्थि-रुधिरादिके करी रहित हुई। इति तेरे थानके संघयण विचारियां।
अथ संस्थानविचारः। सरीरना आकार विशेषहुइ संस्थान कहीइ। ते संस्थान ६ कहीइं। समचतुरस्र १ न्यग्रोधपरिमण्डल २ सादि ३ वामन ४ कुब्ज ५ हुंड ६। जे सर्वांगि लक्षणोपेत हुइ ते समचतुरस्र संस्थान कहीई १। जे सइर नाभिऊपहिरऊं लक्षणोपेत हुई जिम वटवृक्ष ऊपरि पूरउं नाभि हेठउं हीन निर्लक्षण हुइ ते न्यग्रोध परिमण्डल २। जे नाभि हेठउं लक्षणोपेत हुइ ते सादि संस्थान ३। पूठि पेटहियइ निर्लक्षण, माथउं कोट, हाथ, पग एतला अवयव लक्षणोपेत हुई ते वामन (संस्थान} संस्थान ४। जिहां माथउं कोट पग निर्लक्षण बीजा अवयव सवे लक्षणोपेत ते कुब्ज संस्थान ५। जिहां सर्व अवयव निर्लक्षण हई ते हंड संस्थान ६।
पृथ्वीकायमांहि हुंड पुण मसूरधानना चांदला सरीखउं १। अप्कायर्नु हुंड संस्थान पाणीना पोपटा सरीखउं २। तेउकायनउं हुंड संस्थान सुइन सरीरखउं ३। वाउकायनउं हुंड संस्थान ध्वजपताका सरीखउं ४। वनस्पतिकाय-बेंद्रिय-केंद्रिय-चउरिद्रिय-असंज्ञिया तिर्यक्पंचेंद्रिय(नउ) हुंडसंस्थान विचित्र प्रकारि हुई ५-६-७८-९। संज्ञिया पंचेंद्रिय अनइ मनुष्यहई छइ संस्थान हइ १०-११ नारकीनइ मुल वैक्रिय १ उत्तर वैक्रिय बिह हंड संस्थानजि हुइ २। देवनइ मूलवैक्रिय समचउरस हुइ, उत्तर वैक्रिय पुण विचित्र संस्थान हुई १३। इम छ संस्थान तेरे थानके विचारियां अथकार?||
अथ जघन्य उत्कृष्ट सरीरविचारः। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेउकाय ३ वाउकाय ४ वनस्पतिकाय ५ जघन्य औदारिक शरीर अंगलनउ असंख्यातमउ भाग अनइ उत्कृष्टउं अंगुलनउ असंख्यातमउ भाग, पुण जघन्यपाहि उत्कृष्टउ असख्यातमउ भाग मोटेरडउ जाणिवउ। जेह भणी असख्यातउ असख्यातभेदे हुइ। वायुकायमांहि वैक्रिय सइर हुइ। तेहू जघन्य नइ उत्कृष्टतउं अंगुलउं असंख्यातमउ भाग जाणिवउं। जघन्यपाहिइं उत्कृष्टउं मोटेरडउं। वनस्पतिकाय अनन्तकायनउं सइर उत्कृष्टउंइ अंगुलनउं असंख्यातमउ भाग। प्रत्येक वनस्पतिनूं सरीर जघन्यतः अंगुलनउं असंख्यातमउ भाग, उत्कृष्टउं सहस्रजोअण कमलादिकनउं। बेंद्रियनउं धुरि ऊपजतां जघन्य सइर अंगुलनउ असंख्यातमउ भाग, उत्कृष्टउं बार जोअण समुद्रगत शंखादिकनउं। त्रींद्रियनउं धुरि ऊपजतां अंगुलनउ असंख्यातमउ भाग, उत्कृष्टउं [तेइंद्रिनुं सरीर धुरिं उपजतां अंगुलनां असंख्यातमो भाग] उत्कृष्टउं ३