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परिशिष्ट-२
संचइय ण गेण्हंती, गिलाणमादीण कज्जट्ठा ॥ पसत्थविगतिग्गहणं,२ गरहितविगतिग्गहो यः कज्जम्मि । गरहा लाभपमाणे, पच्चयपावप्पडीघातो ॥ कारणओ उडुगहिते, उज्झिऊण गेहंति अण्णपरिसाडी५ । दाउं गुरुस्स तिण्णि उ, सेसा गेण्हंति एक्केक्कं ॥ उच्चार-पासवण-खेलमत्तए तिण्णि तिण्णि गेण्हंति । संजय आएसट्ठा 'भुंजेज्जऽवसेस उज्झंति ॥ धुवलोओ उ जिणाणं, निच्चं थेराण वासवासासु । असहू गिलाणयस्स व, 'नातिक्कामेज्ज तं रयणि ॥ मोत्तुं पुराण-भावितसड्डे, संविग्ग सेसपडिसेहो१० । 'मा होहिति निद्धम्मो',११ भोयणमोए य उड्डाहो ॥ दारं ॥ डगलच्छारे लेवे, छड्डण गहणे तहेव धरणे य ।। पुंछण-गिलाण मत्तग, भायणभंगादिहेतू से१२ ॥ इरिएसण-भासाणं, मण-वयसा-काइए१३ य दुच्चरिते । अहिकरण-कसायाणं, संवच्छरिए विओसवणं ॥ कामं तु सव्वकालं, पंचसु समितीसु होति जतियव्वं ।
'वासासु अहीगारो',१४ बहुपाणा मेदिणी जेणं१५ ॥ ९१. भासणे' संपातिवहो, दुण्णेओ नेहछेए ततियाए । ८२।१ की गाथा निभा ३१६९ में ही मिलती है। ८. ०वासा उ (बी) । आयारदशा की हस्तप्रतियों में यह गाथा अप्राप्त ९. तं रयणि तू णऽतिक्कामे (निभा) । है। चूर्णि में भी इस गाथा की व्याख्या नहीं मिलती नातिकमेज्जा तं० (बी)। है। इस गाथा के सम्बन्ध में दो बातें सम्भव है। १०. सच्चित्त से० (ला निभा ३१७४) । प्रथमा तो स्वयं निशीथ भाष्यकर ने स्पष्टता के ११. मा निद्दओ भविस्सइ (मु. अ) । लिए यहगाथा लिख दी हो। दूसरा यह भी सम्भव १२. प्रस्तुत गाथा आयारदशा की चूणि की मुद्रित है कि आयारदशा नियुक्ति के लिपिकारों द्वारा पुस्तक में तथा कुछ आदर्शो में नहीं मिलती यह गाथा छूट गई हो। पुष्ट प्रमाण के अभाव में
है। किन्तु चूणि में इसकी व्याख्या मिलती इसे नियुक्ति गाथा के क्रम में नहीं रखा है।
है। इसके अतिरिक्त निशीथ भाष्य (३१७५) विगतीए गहणम्मि वि (निभा ३१७०) ।
में भी इस क्रम में यह गाथा उपलब्ध है। ३. व (निभा, ब)।
हमने इसे नियुक्ति गाथा के क्रम में ४. कारणे (निभा ३१७१) ।
सम्मिलित किया है। ५. साडिं (निभा), परिपाडी (बी) ।
१३. कायए (निभा ३१७६) । ६. संजम (ला, निभा ३१७२) ।
१४. वासावासं अहिगारो (ब) । ७. य (अ, निभा ३१७३) ।
१५. निभा ३१७७ ।