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पंच महाशत विद्याशत सत लघु सही। हैनिमित्त अष्टांग सुजिनवर विधि कही।।
विद्या साधन फल भी जिनके वर्णये। है विद्या अनुवाद पूर्व संज्ञा लये।।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित पंचाशत महा विद्या सप्तःशत क्षुद्र विद्या अष्टांग महानिमित्तानि प्ररूपयनदशलक्षाधिक कोटि 11000000 पद प्रमाण विद्यानुवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय
देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।21।।
तीर्थंकर बल भद्र आदि जो हो गये। पुण्य कहै कल्याण वाद पूरब ठये।।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित तीर्थंकर चक्रवर्ति बलभद्र वासु देवेन्द्रादिनां पुण्य भव्यावर्णकं ___षट् विंशति कोटि 260000000 पद प्रमाण कल्याणवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय
देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥22॥
मन्त्र तन्त्र अरु ज्योतिष विद्या है सही। भूतप्रेत की नाशक विधि विस्तर कही।।
अष्ट अंग के निमित्त कहे जिस सारजी। प्राणावायं पूरब नाम प्रचार जी।।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अष्टांग वैद्यविद्या गारुढ़ी विद्या मन्त्र तन्त्रादि निरूपकं त्रयोदश कोटि 130000000 पद प्रमाणं प्राणावायं पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।23॥
गीत नृत्य है छन्द सु विधि जिसमें सही। सकल शास्त्र नयकला महा उसमें कही।।
अलंकार का वर्णन जहां विशाल है। जानो परब किरिया नाम कमाल है।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।।
ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित छन्दोंलकार व्याकरण कला निरूपकं नव कोटि 90000000 पद प्रमाण क्रिया विशाल पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं निर्वपामीति
स्वाहा।।240
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