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वर्ण थान दो अक्ष आदि संस्कार है। सत्य प्रवादा पूर्व कहै जग सार है।।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित वर्ण स्थान तदाधार द्विद्रिन्यादि वचन गुप्ति संस्कार प्ररूपकं षडधिक कोटि 10000006 पद प्रमाणं सत्य प्रवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं
निर्वपामीति स्वाहा॥17॥
गमना गमन सुलक्षण जीवो का सही। पूरब आत्म प्रवाद नाम शुभ है यही।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित ज्ञानाद्यात्मक कर्तृत्वादियुतात्म स्वरूप निरूपकं षडविंशति कोटि 260000000 पद प्रमाण आत्म प्रवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।18॥
बन्ध उदय कर्मों की सत्ता जानिए। कर्म प्रवादा पूरब कहत सु मानिए।।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित कर्म बन्धोदायेपशमोदीरणा निर्जरा कथकमशीति लक्षाधिक कोटि 18000000 पद प्रमाण कर्मप्रवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं निर्वपामीति
स्वाहा।।19॥
प्रत्याख्यानरु द्रव्य तथा पर्यय कहै। प्रत्याख्यानी पूर्व नाम याका लहै।।
उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित द्रव्यपर्यायरूप प्रत्याख्यान निश्चलन कथकं चतुरशीतिलक्ष 8400000 पद प्रमाण कर्मप्रवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।200
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