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निज काया को वश में ठाने अरु चंचलता टारी है। रहित प्रमादी राखे थिरता दुरित जाल नहीं धारी है।। धन्य धन्य गुरु आप जगत में मन को बस में कीना है।
ध्यान धरत हो निज आतम का मोक्ष पन्थ को लीना है।। ॐ ह्रीं श्री कायगुप्ति प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
दोहा
परम पूज्य आचार्य को, पालो गुण छत्तीस।
वसु विधि अध्य चढ़ाकर, सदा नमाऊं शीस।। ऊँ ह्रीं श्री षटत्रिंशद् गुण प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।4।
ऊँ ह्रीं श्री आचार्य परमेष्ठि देवेभ्यो नमः स्वाहा।
(यहाँ 9 बार जाप्य करें।)
जयमाला -दोहा
छत्तीसों तुम गुण सहित, सूरी पद मुनिराजा गावें तब गुणमालिका, होय सफल मम काज।।
पद्धडी
आचार्य परम गुरु धन्य आप, हम आगावें तुम यश प्रताप। जय परमशांत गुणगण समेत, हम ध्यावें नित प्रति सुगति हेत।।1।।
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