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जिननाथ पूजा से सफल, निजदेह को जो नर करें। आश्चर्य क्या यदि मोक्ष-लक्ष्मी, को सहज ही वे वरें।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना । श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।64॥
ओं ह्रीं मोक्षवर्गसाधनसिद्धकरणसमर्थाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निर्लिप्त श्री जिनराज चौंसठ, ऋद्धियों के नाथ हैं।
झुक रहे शत इन्द्र के पद, पंकजों के माथ हैं।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना ॥65॥
ओं ह्रीं चतुःषष्टिऋद्धिसमानांगाय श्री शान्तिनाथाय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शत एक विंशति तीर्थंकर, जिनचन्द्र की पूजा करें।
विघ्नौघ के शान्त्यर्थ मैं, पूणाघ्य चरणों में धरों।।66।
ओं ह्रीं शतैकविंशतिकोष्ठात्मकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अरिहन्त के अतिरिक्त कोई, है नहीं जग में शरण ।
संसार सागर में सुनौका, मात्र हैं प्रभु के चरण ।। इतीष्टप्रार्थनां कृत्वा पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ओं ह्रीं अर्हंजगच्छान्तिकराय श्री शान्तिनाथाय नमः सर्वोपद्रवशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा। (जातिपुष्प या लवंग से 108 बार जाप देवें)
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