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पर्वत से ज्यों जल की धारा पड़त लगे वह प्यारी। त्यों प्रभु चंवर ढुरे चतु षष्टी सुमन करे जयकारी।। प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे।
पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।। ॐ ह्रीं चतषष्ठी चामर विज्यमान प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽयं निर्वपामीति
स्वाहा।।381
रत्न जडित सिंहासन सुन्दर लागे वह अति प्यारा।
अधर विरजे उस पर जिनवर देव करे जयकारा।। प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे।
पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।। ऊँ ह्रीं सिंहासन प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।39॥
कोटी सूर्य लज्जित हो जावे तनु भामण्डल भारी। ___ तापे सप्त भवों कि वाते दर्शन है सुखकारी।। प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे।
पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।। ऊँ ह्रीं प्रभामण्डल प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।40॥
देव बजावे नाना बाजे दन्दभि शब्द कहाये। सुमन करे गुण गान भक्ति में मन में बहु हर्षावे।। प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे।
पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।। ऊँ ह्रीं देव दुन्दुभि प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।41॥
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