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तहां सुमोहन चित्र करावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।
दोहा इत्यादिक गुन जो लहे, दहे कर्मवन सोय। भावे प्रवचनभावना, अति चितवत्सल होय।।
ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावनायै महाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
समुच्चय जयमाला - दोहा सोलहकारण भावना, भावे जो भवि सोय। सो तीर्थंकर पद लहे, घनो कहे क्या कोय।।
मुनियानन्द की चाल षोडशकारण यह, भावना भाय है, तहां न मद आठ षट् नायतन पाय है। अष्ट सम्यक तने, दोष नहिं जानिये, मूढ़ता तीन नहिं, ज्ञान शुद्ध आनिये।। विनय गुरु देव की, राह जाने सही, भल अविनय विषे, बुद्धि राखे नहीं। जगत जस पाय अघ, ढाय समता लहे, जीव जो भावना भाय षोडश यहे।। नारि पशु देव की, मनुष की जान जी, काठ चित्राम यह, जीव बिन मान जी। चार विध नारि तजि, शील भावन सही, कारण षोडश यह, भावनाएं कहीं।। ज्ञान उपयोग सो, पाठ जिनधुनि करे, श्रुतिअध्ययन में, नाँहि अन्तर परे।
पढ़े उपदेश करि, प्रश्न बहु ले सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। देख जग चपल नहिं, विषयसुख राचि है, मात सुत नारि तन, मांहि नहिं माचि है।
धरे वैराग्य उर, माँहि आनंद सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। त्याग धन तन करें राजलक्ष्मि सार जी, मात सुत पिता तिय देख बन्धकार जी। छाड़ि परभाव, निजमांहि राचे सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।।
करे तप दुर्धरा, देख कायर डरें, मास पक्ष लो, नांहि अनजल करें। शीश गिरि तरुतलें, नदी तट पै सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।।
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