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अंग इन आदि बहु, विनयविधि ठानिये, प्रीति अति अन्तरें भक्ति शुभ आनिये। जान जिनवानि आदर विनय लाइये, भाव प्रवचन वात्सल्य जजि गाइये।।
ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावनायै महाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला - दोहा वात्सल्य प्रवचन भावसों, जिनध्वनि तें अतिनेह। विनयसहित वरते सदा, सफल तिन्हों की देह।।
(बेसरी छन्द) जिनवानीतें वत्सल भावा, मैटत है जग का सब दावा। ताकी सुर नर सेव करावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।।
जो श्रुत सुने भाव हरषावे, आवा पर भेद तत्त्व सु पावे। तिनतें सब जग प्रीति करावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।।
प्रवचनपाठ करे मन लाई, ताको जस गाव सुरराई। ताके पाप निकट नहिं आवें, जो जिय प्रवचनवत्सल भावें।। जिन धुनि सुने हने अघ सोही, याको भेद लहे नहिं मोही।
सर्वलोक का प्रेम जु पावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।। विनयसहित पुस्तक को राखे, ताका विनयो सब जग भाखे। प्रीति घनी जिन धुनिते लावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।।
कनक रजत के पत्र महाने, सुन्दर महामूल्य के आने। तिनपै जिनधुनि का लिखवावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।
श्रुतको बेठन सुभग करावन, लावे पट अतिसुन्दर पावन। डोरी सुभग आन हरषावे, जो जिय प्रवचनवत्सल भावे।।
आगम धरने ठाम अनूपा, बनवावे दृढ़ सुन्दररूपा।
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