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देव धर्म
गुरु विनय बखान, और विनय विधि बहुतीजान ।
विनयक अंग में यह विधि कही, सो मैं जजो अरघ ले सही।
ऊँ ह्रीं वैनयिकसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पंच परमेष्ठी थुति विधि तहां, नमस्कार परदक्षिण जहां।
कृतीकर्म में यों विधि कही, सो मैं जजों भाव शुभ मही।
ऊँ ह्रीं कृतिकर्मसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि अहारइमि करे इम चलै, जती अचार और तहां मिलै। दशवैकालिक इस विधि कही, सो मैं जजों भाव शुभ ठही ।।
ऊँ ह्रीं दशवैकालिकसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
परिषह सहन सहन उपसर्ग, इनका फल परसन के वर्ग ।
उत्तराध्ययन विषें इमि कही, सो मैं जजों भाव शुध मही।।
ऊँ ह्रीं उत्तराध्ययनसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
यह मुनि योग्य आचरणजोय, भये अयोग्य दंड ले सोय। कल्पविहार अंग इमि कही, ते मै जजों भाव शुध मही ||
ऊँ ह्रीं कल्पविहारसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
या द्रव्य खेतर कालर भाव मुनि की क्रिया योग्य यह ठाव।
कल्पाकल्प अंग इम कही, ते अंग जजों शुद्ध चित सही
ऊँ ह्रीं कल्पाकल्पसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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