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दोनों कुलों की शान्ति को निज, गुण विभूषित जो करें। रमणीयता वरती उन्हें जो, शान्ति जिन पूजा करें।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।44।। ओं ह्रीं उभयकुलकमलविकासन सूर्याशुसमाचरण प्रतिष्ठितगुणमण्डिताय अत्यन्त सुन्दराकृतिपुत्रवन्तिगेहमण्डनपदप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अर्चना शुभ भाव से, अरिहन्त की जो नित करें।
श्रावकोत्तम व्रतधरन, सद्बुद्धि को वे नर वरें।। तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।45।। ओं ह्रीं श्रावकसद्वृत्तकरणबुद्धिपदप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शारदी नव ज्योत्स्ना-सग, कीर्ति का विस्तार हो। प्रभु अर्चना हो मात्र शुभ, जिनके लिये आधार हो।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।46।। ओं ह्रीं परमोज्ज्वलकीर्तिपदप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कल्याणकी, राजलक्ष्मी, धनदसम वे नर वरें। जिनराज की शुभ भावना से, जो नर सतत पूजा करें।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
__श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।47॥ ओं ह्रीं कल्याणकरराजधनदसमलक्ष्मीपदप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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