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दृढ़ आसनलखके थितिकरा, विविक्तशय्यासन तप वोधरा।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री विविक्तशय्यासनतप: सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
तनको कष्ट करे सम रहे, कायकलेश नाम तप यहे।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ॐ ह्रीं श्री कायकलेशतपः सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ये षट् बाह्य तनें तप जान, पापबेल हर करबत मान।
इनको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री बाह्यषट्तपः सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
लगे दोष को जो सुध करे, सो प्रायश्चिततप अघवन हरे।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्राश्यिचत्ततपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आप थकी गुरु का सत्कार, सोही विनय नाम तप सार।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ॐ ह्रीं श्री विनयतपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि को खेद निवारन काज, हाथ पाँच चम्पैं गुरु राज।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री वैयावृत्यतपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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