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प्रत्येकायं (चौपाई छन्द)
तप द्वादश दो विध मनलाय, अन्तर बाहर भेद बताय।
इनको धरे आचारज सोय, ते गुरु जजों अरघतें जोय।। ऊँ ह्रीं श्री द्वादशतपसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
इक उपवास मास पख जान, वर्ष आदि उपवास बखान।
इनको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भावशुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री अनशनतप:-सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भूख थकी लघु खावे सही, अवमौदर्य नाम तप यही।
इनको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री अनशनतपः सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नितप्रति वरत करे परमान, सो व्रतसंख्यातप अघहान।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री व्रतपरिसंख्यानतपः सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
रोज रसनको त्यागे सही, रसपरित्याग नाम तप यही।
याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। । ऊँ ह्रीं श्री रसपरित्यागतपः सहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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