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जयमाला (बेसरी छन्द)
अर्हद्भक्ति भाव जो भावे, सो उत्कृष्ट स्वपद को पावे । अहद्देव महा गुण गेहा, देव जजें बहु कर कर नेहा।। जनमत जो दस अतिशय पावें, ये गुण और न जन्मत पावें।
दस अतिशय पावें फिर देवा, केवलज्ञान हुये स्वयमेवा चौदह अतिशय देव करावें, तिनकी महिमा किम मुख गावें । आठ प्रातिहारज फिर होई, ये गुण प्रभू बिन लहे न कोई।। अनन्त चतुष्टय मंगलकारी, सो गुण भी जिन के आधारी। सब गुण मिल छयालीस धरैया, सो अरिहन्त देव जज भैया ॥ या जिन सेव सकल अघ टारै, जिनकी सेव भवोदधि तारे । अर्हत्सेव बिना सुख नांही, मोक्ष मिलेनहिं जिनथुति पांही।। या प्रभू की सेवा मैं चाहूं, जिनथुति कर भव सफल कराहूं।
मो मन वांछा है यह भाई, अर्हद्भक्ति मिले सुखदाई।। जबलों मोकों मोक्ष न होई, तुम थुति चहूं और नहिं कोई। तातें अरज यही अरिहन्ता, आप भजन काटे जगतन्ता ॥
दोहा
अरिहन्त इन गुणधार जों, भाव भक्ति इन भाय। ताफल जिनपद पाय है सो मैं पूजों आय।। ऊँ ह्रीं श्री अर्हद्भक्तिभावनायै पूर्णाघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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