________________
धूप दशांग बनाय सु प्यार, बहि मध्य जारो मजधार। पूजों मन वच भक्ति लगाय, अहद्भक्ति भावना भाय।। ऊँ ह्रीं श्री अर्हद्भक्ति भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल लोंग बदाम अनार, खारक पुंगीफल ले सार। पूजों मन वच भक्ति लगाय, अर्हद्भक्ति भावना भाय।। ऊँ ह्रीं श्री अर्हद्भक्ति भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन अक्षत सुमलेय, चरु दीपक सुधूप फल लेय।
अध्य बनाय शीश का नाय, पूजों अर्हद्भक्ति सुभाय। ॐ ह्रीं श्री अर्हद्भक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकायं (अडिल्ल छन्द)
वृक्ष अशोक सुजान ताहि देखे सही, रहे नहीं उर शोक होय उर सुख कही।
__याके धारी अर्हद देव महान हैं, पजों अर्हद्भक्ति भाव गनथान है। ऊँ ह्रीं श्री अशोकवृक्षप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्रक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देव पहुप की वृष्टि करें थुति लायके, नभतें आवे जेम रतन से भायके। मानों ज्योतिष देव भूमि पै आय हैं, इन जुत देव नमों सुभावना भाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री शुभवृष्टिप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
खिरे दिव्यधुनि सारसु जिनवर की सही, प्रातिहार्य यह जान सकल जिय हित मही। ____ या जुत अर्हदेव भक्ति शुभ भावना, मैं पूजों थुति आन अध्य धर पावना।। ऊँ ह्रीं श्री दिव्यध्वनिप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
899