________________
गुरु
लगे दोष शुध होंय, जाने सो सो प्रायश्चित जोन, मैं पूजों जल आदि ।। ऊँ ह्रीं श्री प्रायश्चित्ततपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दे सही।
विनय करे गुरु देव, धरम तथा धरमी तनों।
सो तप विनय स्वमेव, मैं पूजों जल आदि ।। ॐ ह्रीं श्री विनयतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि के चम्पै पाव, जो तन में तप खेद हो। सो वैयावृत भाय, मैं पूजों जल आदि ।। ऊँ ह्रीं श्री वैयावृत्यतपोभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निशदिन निधुनि पाठ, पूछे सुनि चितवन करे।
सो स्वाध्याय तप ठाठ, मैं पूजों जल आदि । ऊँ ह्रीं श्री स्वाध्यायतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तनतें ममत निवार, इक थल तिष्ठे धैर्यसो ।
सो व्युत्सर्ग तप सार, मैं पूजों जल आदि ।। ॐ ह्रीं श्री व्युत्सर्गतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मन वच तन इक ठाम, चिंते वृष शुध भावना। ध्यान तिको शुभ नाम, मैं पूजों जल आदितैं।। ऊँ ह्रीं श्री ध्यानतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
887