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भूख थकी लघु खाय, अर्ध तथा दोय ग्रासजी।
सो ऊनोदर भाय, मैं पूजों जल आदितें।।
ऊँ ह्रीं श्री ऊनोदरतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रोज वस्तु परमान, राख लेय दृढ़ भावतैं।
सो व्रतसंख्या जान, मैं पूजों जल आदि ।। ऊँ ह्रीं श्री व्रतपरिसंख्यानतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रोज रसन को त्याग, षट रस वा दो एक जी
रसपरित्यागव्रत लाग, मैं पूजों जल आदि ।। ऊँ ह्रीं श्री रसपरित्यागतपोभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आसनादि दृढ़ भाव, नांहि छले खग देवतैं।
सो शय्यासन चाव, मैं पूजों जल आदि ।।
ॐ ह्रीं श्री विविक्त शय्यासन तपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निमित्त कष्ट को लाय, समता भवन जो रहे।
काय क्लेश सु भाय, मैं पूजों जल आदि ।।
ऊँ ह्रीं श्री कायक्लेशतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ये तप बाह्य बखान, जगतपूज्य फल दें सही।
महा उच्च गुणजान, ते पूजों जल आदि । ऊँ ह्रीं श्री बाह्यषट्तपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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