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प्राण जांय तो झूठ कहे, महाधीर सतवादी रहे।
सत्यवचन सब धर्म महान, सो व्रत जजों अध्यतें आना ।। ऊँ ह्रीं श्री असत्यत्यागभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
परधन-ग्रहण महा अघ जान, छूवें नहीं दया की खान। चोरी त्याग होय गुणथान, सो व्रत जजों अध्यतें आन ऊँ ह्रीं श्री चैर्यत्यागभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नारी चार जाति की सोय, देव मानुषी आदिक होय। चारों मन वच त्यागी जान, सो व्रत जजों अध्यतें आन । ऊँ ह्रीं श्री कुशीलत्यागभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
परिग्रह त्याग करे जिस सोय, जाके शिव की वांछा होय । पापकार आरम्भ पिछान, सो व्रत जजों अध्यतें आन। ऊँ ह्रीं श्री परिग्रहत्यागभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तनतें ममता-भाव निवार, शिव के हेत नगनपद धार । सहें परीषह खेद न लांय, तनुविरक्त के पूजों पांय॥ ऊँ ह्रीं श्री तनुममत्वत्यागभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भोग सम्पदा सकल निवार, सहस छ्यानवे सुरसी नार। सब तजि मोक्ष भावना भाय, सो त्यागी पूजों मन लाय।। ऊँ ह्रीं श्री राजभोगत्यागभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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