________________
सम कलपतरु गंध वर्ण धार, तिनकी करि माला भक्ति सार। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताके फल काम न जोर पाय।।
ॐ ह्रीं श्री त्यागभावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
षट् रस नैवेद्य बनाय सार, धरि सुभय पात्र में हरष धार। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताफलें क्षुधागद तुरत जाय।। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक मणिमय अति जोतरूप, धरि थाल आरती कर अनूप। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताके फल मिथ्यातम नसाय।।
ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
कर धूप अगर चन्दन सुगन्ध, वन्ही में खेऊँ भगनि बन्ध। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताके फल क्षय को कर्म जाय।।
ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल बदाम खारक अनूप, पुंगीफल आदिक ले सुरूप। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताके फल पावें मोक्ष ठाँय।। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन अक्षत सुमन सार, चरु दीप धूप फल अध्यकार। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताके फल पदवी सुभग पाय ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
879