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हो सन्ताप कामवश सोय, ता वेदनतें अति दुख होय।
यो तजि शुद्धशील मन भाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री सन्तापकामवाणरहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
कामवाण जाके मन सोय, मन उदास उच्चाटन होय।
यो तजि शुद्धशील मनभाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री उच्चाटनकामवाणरहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
वशीकरण विधि शुध विसराय, तावश और न काज सुहाय।
या बिन शील भाव सुखदाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री वशीकरणकामवाणरहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
मोहनविधिमोहित चित सोय, ताको हौल दिला चित होय।
या बिन शील शुद्धता थाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री मोहनकामवाणरहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
ये ही पाँच काम के वाण, हैं लौकिक शील ही हान।
इन बिन भाव शील हितदाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री पंचकामवाणरहित लौकिकशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
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