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प्रत्येकाध्य
(चौपाई छन्द) शीलभाव नवबाड़ समेत, सो शिवनारी दे उर हेत।
आठ द्रव्य कर अध्य बनाये, पूजों शीलवर शुभ भाय।। ॐ ह्रीं श्री नवबाड़सहितशीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रागसहित तियतन नहिं जोय, ताके शील भावना होय।
सो ही आठों द्रव्य मिलाय, पूजों शीलवर शुभ भाय।। ऊँ ह्रीं श्री रागसहितस्त्रीतनावलोकनत्याग शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै
अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
रागवचन मुखतें नहिं कहे, सुनिके ताहि राग नहिं लहे।
ये लख शीलदोष नहिं लाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री रागवचनरहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
पूरब भोग न चिन्ते सोय, ताके शील बरत दृढ़ होय।
शील भावना सब सुखदाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री पूर्वभोगचिन्तारहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
भोजन वृष्य गरिष्ट न लेय, दूध धीव मावा ना देय।
शीलभावना सो दृढ़ लाय, सो मैं शील जजों शिरनाय।। ॐ ह्रीं श्री गरिष्टभोजनरहित शीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
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