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गंगा नीर अति निर्मलो जानिये, रतनतें जडित शुभपात्र में आनिये। पूजिये भावना, दर्श शुद्धि आदिया, या बिना मोक्षमारग नहीं किन लिया।।
ऊँ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि भावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
सुभगचन्दन घस्यो नीरगंगा थकी, कनकझारिधरों भक्ति मुखतें छकी। पूजिये भावना, दर्श शुद्धि आदिया, या बिना मोक्षमारग नहीं किन लिया।
ॐ हीं श्री दर्शनविशुद्धि भावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
सुभग अक्षत महा ऊजरे गंधमई, भक्तिभावन थकी अखत कर में लई। पूजिये भावना, दर्श शुद्धि आदिया, या बिना मोक्षमारग नहीं किन लिया।।
ऊँ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि भावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।3।
__ फूल सुरवृक्ष के गन्धजुत लाइये, होय परफुल्ल उर फूल चढ़वाइये। पूजिये भावना, दर्श शुद्धि आदिया, या बिना मोक्षमारग नहीं किन लिया।
ऊँ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।।4।
सुभग चरु लेय षट् रस तनै सारजी, कनकपातर विषै भक्ति” धारजी। पूजिये भावना, दर्श शुद्धि आदिया, या बिना मोक्षमारग नहीं किन लिया।
ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि भावनायै नैवेद्यम निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
दीप मन के हरा रतनमय सारजी, कनककरि थाल भरि आरती धारजी। पूजिये भावना, दर्श शुद्धि आदिया, या बिना मोक्षमारग नहीं किन लिया।
ऊँ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
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