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पुण्यात्मा अरु बड़भागी, जो मुनिगण को नित करते वन्दन ।। मुनियों को लघु आहार दान, बट बीज भांति शुभफल दाता।
सुश्रूषा वैयावृति भाव, इह भव सुख भर लाता।।10।। मुनि ध्यान खड्ग ले मोह महारिपु दलन कार्य में लीन रहें। वे क्रोध मान प्रलोभ युत मोह फौज को क्षीण करें ।। जो तपश्चरण दिनचर्या में, बाधा वन पथ भरमाते हैं। मुनि जीत क्षुधादिक परिषह को आतमबल बोध कराते हैं।।11।। हरि हर समान जिसके सन्मुख, अपने प्रताप को भूल गये। उस कामदेव को क्षय करके, मुनि भव सन्तति प्रतिकूल भये। वीहड़ वन में सामायिक में, मुनिमुद्रा हो पाषाण शिला। वह अचल रूप लखि खाज खुजाते मृग गण, क्या सौभाग्य मिला॥12॥ वे क्षमामूर्ति मुनि यत्र तत्र, यदि धर्म देषणा नहिं करते। त मनुज भूला स्वधर्म, राक्षस वन नरभक्षण करते।। फिर कौन बताता अरे ! जीव हिंसा का पाप नहीं पालो । हिंसा का फल नरकों का दुख, नर जन्म वृथा न गंवा डालो।।13। चारों निकाय के देववृन्द, जिनवर पूजन में रहें मगन। धन धन्य महंत मुनीश उन्हें, हम सबका बारम्बार नमन।। वस यही कामना, शिव पथ में, पग रखने का सौभाग्य मिले। होवें सब प्राणी सुखी, सभी के सुख सरोज पर ओज खिले।
ऊँ ह्रीं अरहन्त सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।14।। ऊँ ह्रीं अरहन्तसिद्धाचार्योपाध्यायसाधुभ्यो नमः सर्वशान्ति कुरु कुरु स्वाहा। (108 बार जाप करें)
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