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प्रभु वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, में श्रद्धान जगाता है।। श्रद्धान अटल हो णमोकार, दुर्गति से मुक्ति दिलाता है। पर्वत अटवी गुह भूत प्रेत, मृगपति भय दूर भगाता है।।4।।
अरहन्त देव ने समोशरण में, तत्व ज्ञान उपदेश दिया। निज शुद्ध भाव में रमण धर्म, हिंसा अधर्म, सन्देश दिया।। खुद जियो, शान्ति से औरों को जीने दो, कहती जिनवाणी। संयम मय शुद्धाचारी जो भव सिन्धु तिरै ऐसे प्राणी।।5।।
अर्हन्त प्रभु की दिव्य ध्वनी ने तत्व बोध जब दर्शाया। वसुकर्म जयी, शाश्वत अनन्त शिव, रूप सिद्ध प्रभु को पाया।
अरहन्त सिद्ध परमेष्ठी के, शुध आत्म गुणों का अंत नहीं। छयालीस आठगुण का वर्णन, व्यवहार दृष्टि से बात कही।।6।।
चरित्र शिरोमणि, तपोमूर्ति, मुनि संघ श्रेष्ठ आचार्यप्रवर। शिक्षा दीक्षा दें मुनिगण को, दे ज्ञान चरित गुण के आगर।। जब मुक्त पथिक आचार्यों की संगत, प्रवचन सौभाग्य मिले। श्रद्धा जागे, ममता भागे, हर्षित मन हृदय सरोज खिले।।7।। मुनि उपाध्याय नित ज्ञान साधना लीन, जिनागम के ज्ञानी। मुनिगण को देते ज्ञान, तत्वश्रद्धान विमल करते ध्यानी।।
वे ज्ञान चक्षु जाग्रत करके, कल्याण मार्ग दिखलाते हैं। वे स्वयं तिरे अरु औरों, को भवसागर पार लगाते हैं।।8।। मुनि मुद्रा धारी सौम्य दिगम्बर साधु सदा जयवन्त रहें।
लेकर अहार इकबार, ज्ञान अमृत वर्षा में व्यस्त रहे।। कम लेकर, गिरि के समदानी, इनके करुणापूरित विचार। सब जीव करें कल्याण, भावना परित निर्मल निर्विकार।।9।। जो वीतराग पथ चले दिगम्बर मुनि को बारम्बार नमन।
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