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समिति ऐषणा धारें, मुनिवर, लेवें शुद्ध सरल आहार। नियम साध निकलें अहार हित, विधि विधान का करें विचार।।
अन्तराय का हो यदि कारण, भोजन त्याग करें ऋषिराज।
ऐसे कठिन तपस्वी के प्रति, नतमस्तक हो सकल समाज।। ऊँ ह्रीं एषणासमिति भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।8।।
निक्षेपण आदान समिति में, लें विवेक से मुनि नित काम। पिछी कमण्डलु आदि रखें भू मार्जन कर, रखते नित ध्यान।। जीवों का प्रतिघात न हो, इसलिए पिछी नित रखते पास।
मोर पंख पीछी से परिमार्जन नहिं दे जीवों को त्रास।। ऊँ ह्रींआदान निक्षेपण समिति भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
साधु दिगम्बर पालन करते, नित उत्सर्ग समिति निर्दोष। भू को लखि निर्जीव, मूत्रमल आदि छोड़ते, पाते तोष।।
जीवों की सवविध रक्षा हो, ऐसा रखते ध्यान विशेष।
दे औरों को कष्ट, न सुख पा सकते, यह जिनमत उपदेश।। ऊँ ह्रीं उत्सर्ग समिति भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥10॥
पंचेन्द्रिय विजय
मुनि स्पर्शन इन्द्रिय जेता, तन चेतन भेद प्रणेता।
परिषह के कष्ट न माने, सुख दुख दोनों सम जानें।। ॐ ह्रीं स्पर्शन इन्द्रिय जय भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।11॥
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