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________________ नवमवर्ष दूजा रविवार, व्रत संयम में हृदय पखार। दुखदायक भवसागर तरे, प्रथम परोसा भोजन करे। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य नवमवर्षे द्वितीयरविवासरे क्षायिकदर्शन लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। नवमवर्ष तीजा रविवार, करता स्वात्मा का उपकार। आत्मनन्द रूप अनुसरे, प्रथम परोसा भोजन करे।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य नवमवर्षे तृतीयरविवासरे क्षायिकसम्यक्त्व लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। नव वर्ष चौथा रविवार, स्वर्ग सम्पदा का दातार । बोय सुबोध भाव विस्तरे, प्रथम परोसा भोजन करे ।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य नवमवर्षे चतुर्थरविवासरे क्षायिकचारित्र लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। नवमवर्ष पंचम रविवार, आत्मोत्थान स्वर्ग का द्वार । आस्रवजन्य अशुचिता हरे, प्रथम परोसा भोजन करे। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य नवमवर्षे पंचमरविवासरे क्षायिकदान लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। नवमवर्ष छठवां रविवार, धर्मोपार्जन सुख संचार। शुद्धाचरण क्रियायें करे, प्रथम परोसा भोजन करे। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य नवमवर्षे षष्ठरविवासरे क्षायिकलाभ लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 760
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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