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अष्टवर्ष अष्ट रविवार, विघ्न पुनर्भोगन हर्तार ।
धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार।
ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे अष्टमरविवासरे क्षायिकोपभोगलब्धि विभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अष्टमवर्ष नवम रविवार, वीर्यविघ्न हर सुखसंचार। धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार।।
ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे नवमरविवासरे क्षायिकवीर्यलब्धि विभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अष्टमवर्ष नवम रविवार, क्षायिकलब्धि सुमति दातार। धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार।।
ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे नवसु आदित्यवारेषु क्षायिकलब्धि विभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नवम पूजा
नवमवर्ष पहिला रविवार, मास अषाढ़ शुक्ल अविकार। त्याग भावना मन में धरे, प्रथम परोसा भोजन करे ||
ऊँ ह्रीं श्री रविवारव्रतस्य नवमवर्षे प्रथमरविवासरे क्षायिकज्ञानलब्धि विभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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