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काम क्रोध कंदर्प विदारण, पंच प्रकार संसार निवारण।।5।। णमो आयरियाणं मुनिनायक, आचार्य स्वामियति जन गण त्रायक। गुण छत्तीस भुवन विख्याता, पंचाचार शिष्य जन पाता।॥6॥
सूरि नाम भव्य जन तारण, संघ चतुर्विध वृद्धि कारण। धर्म द्वय विस्तार सुपारण, दीक्षा-शिक्षा बोध प्रसारण।।7।।
अंग एक दस पठन पवित्र, चउदह पूर्वगत शुद्ध चरित्र। शिष्य वृन्द पाठन भुवि सूरा, नव नय भेद कथन गुण पूरा।।8।।
सुगुण पंचविंशति भव तारण, धर्माधर्म संदेह विदारण।
पाठक नाम महा गुणवंता, चतुरथ परमेश्वर जयवंता।।9। उष्णकाल श्री साधु सुगिरि तल, त्रिभुवनरूप ध्यानगत कर तल। वर्षाकाल योग घृत तरुतल, शीतकाल सरिता मुनि तट थल॥10॥
अट्ठावीस सुगुण धर मुनिवर, पंच परम ईश्वर वर शंकर।। निशिदिन मौन परमपद धाता, परमार्थक पदवी जनत्राता।।11।
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