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र- बीजाक्षर रज हर जानो, सबका आश्रय है यह मानो। घट घट उत्तम ज्ञान बढ़ावे, त्यागी जन को दान दिलावे।। ऊँ ह्रीं “र” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।162।।
णं- बीजाक्षर जरा मिटावे, दुर्गति दुःख विलय सब जावे। परम धर्म कर सौख्य बढ़ावे, भोग आदि की चाह घटावे।। ऊँ ह्रीं “णं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।163।।
प- बीजाक्षर स्वपर प्रकाशे, यह जजिहै निज ज्ञायक भासे।
अज्ञान हरे यह अज्ञ जनों का, पाप हरे यह भव्यजनों का।। ऊँ ह्रीं “प' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।164
व्व- बीजाक्षर सन्मतिदाता, सकल पाप हर गुण गण त्राता। जिनशासन को दिव्य बनाता, स्याद्वाद को यह चमकाता।। ऊँ ह्रीं “व्व' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।165।।
ज्जा- बीज यह पुण्य प्रदाता, ताप हरे कुल सौख्य बढ़ाता।
तन को उत्तम रूप बनाता, इससे बल निज का जगजाता।। ऊँ ह्रीं “ज्जा” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।166।।
मि- बीजाक्षर शिक्षा देता, विकट कर्म भंजन कर देता। परम मुक्ति सामाज दिलाता, भव भय भंजन यह कहलाता।। ऊँ ह्रीं “मि” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।167।।
।। ऊँ श्री शांति कुरु कुरु स्वाहा ।।
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