________________
प-बीजाक्षर परम गुरु सम, इसके जप से शुद्ध बने हम। इसको ध्यावे भय मिट जावे, इसको पूजे शोक नशावे।। ऊँ ह्रीं “प'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।156।।
ण्ण- धन के भरे खजाने, बुद्धि बढ़ावें कुबेर सम माने। यह समायि से सुधा पिलाता, इसके जप से मरण पलाता।। ऊँ ह्रीं “ण्ण' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।157॥
तं- बीज व्रत शील दिलाता, वाणी को गोतम दिखलाता। जन समूह का यह लोचन है, भव के बंधन का मोचन है।। ऊँ ह्रीं “तं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।158।।
ध- बीजाक्षर संसृति हरता, यति मुनि ऋषि के मन में रहता। त्रिभुवन वंदित पावन जानो, इसको उत्तम अनुपम मानो।। ऊँ ह्रीं “ध'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।158।।
मं-बीजाक्षर त्रिभुवन मोहन, ऋषिनायक यह उत्तम है धन।
सकल बोधकरे यति दान से, करत पूजन है हम मान से।। ऊँ ह्रीं “मं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।160।
स- बीजाक्षर त्रिभुवन शरणा, मनसु शुद्धि से पूजन करना।
सच्चे सुख को धर्म समाना, हमने इसको उत्तम जाना।। ॐ ह्रीं “स” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।161।।
732