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जनम मरण का नाश कराऊं, लो बीजाक्षर में लो लाऊं। मुनि जन मन को शांतिदाता, पूजूं मेरा मन हुलसाता।। ऊँ ह्रीं “लो” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।110॥
- बीजाक्षर नाना व्रत देता, यम नियमों में खैंच ही लेता । भव जल तरने पोत समाना, ज्ञायक समता भव अमाना ।। ऊँ ह्रीं “गु” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।111॥
त्त-बीजाक्षर कृत पाप नशावे, अपने को अपने में लावे | मनोकामना पूरी करता, सुर नर किन्नर का मन हरता।। ॐ ह्रीं "त्त” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।112॥
भय गण को ‘मो' मार भगावे, जो भी इसका ध्यान लगावे । गगनगामी मुनि चारण ध्यावें, इसके गुण का पार न पावे।। ॐ ह्रीं "मो” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।113॥
चत्तारि सरण पव्वज्जामि
च - अक्षर के गुण को गावैं, मन धन रक्षा करने ध्यावैं । ज्ञान ध्यान में लीन बनाता, योगो जन के मन को भाता ।। ॐ ह्रीं "च" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।114॥
त्ता-राक्षस ओघ नशावे, काम हरे सुख शांति बनावे। कर्महारी इसको हम पूजें, मोक्ष मार्ग हमको सब सूझे ।। ऊँ ह्रीं “त्ता” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।115॥
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