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लि- बीजाक्षर मंत्र सुहाता, गगनगामी मुनि के मनभाता। अघ का नाम निशान मिटाता, पूजूं इसको दुःख घटाता।। ऊँ ह्रीं “लि” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।104॥
प- बीजाक्षर रम्य कहाता, योगीजन के मन को भाता । जन्म मरण के रोग मिटाता, पूजूं इसको पाप हटाता। ॐ ह्रीं "प" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 105॥
ण्ण- बीजाक्षर धनजन दाता, मरणसमाधि सिद्धि सुखदाता। चक्री का पद यह देता, शिवपद में यह धर देता है ।। ॐ ह्रीं “ण” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।106।।
विविध परम सौख्य को पाता, तो का जो ध्यान लगाता। भव-भय उसके पास न आता, ज्ञायक परमानन्द सुहाता।। ॐ ह्रीं "तो" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।107॥
ध-बीजाक्षर सिद्धि प्रदाता, अघ हरता मुक्तिक सुखदाता।
धर्म जिनेश्वर का करता, उत्तम पद में यह धरता है || ॐ ह्रीं "ध" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।108॥
मो - मन का हार बनाऊं, धर्म कर्म में चित्त लगाऊं। अपने में ही मैं रम जाऊं, ज्ञायक परमानन्द रहाऊं। ऊँ ह्रीं "म्मो" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।109॥
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