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________________ मं-बीजाक्षर सूत्र का ईश्वर, पूजू अर्घ से जो परमेश्वर। दत्त भावना बोध का ईश्वर, सूत्रबोधकर कहा महेश्वर। ऊँ ह्रीं 'मं' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥44।। ग-बीजाक्षर पूज्य कहाता, पूज्यपाद कर श्रेष्ठ सुहाता। श्रीजिनधर्म प्रदायक त्राता, अष्ट द्रव्य से पूज रचाता।। ऊँ ह्रीं “ग'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।45।। लं- बीजाक्षर श्रुत का अंश, केवलज्ञान प्रदायक वंश। मति प्रदायक बीज है जानो, पूजू अर्घ से उत्तम मानो।। ऊँ ह्रीं 'लं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।46॥ अरहंता-मंगलं अ- बीजाक्षर विश्व विदित है पंच प्रकार मुनि भाषित है। काम्य प्रदायक लोकमांहि जो, पूजू उत्तम अक्षर है जो।। ऊँ ह्रीं "अ'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।47॥ र-बीजाक्षर परम देह है, वीत शोक जय-दाय गेह है। धर्मध्यान कर शर्म शांति कर, पूजू सु परम सुधाकर। ऊँ ह्रीं "र" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।48।। 712
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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