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हू-बीजाक्षर धर्म ईश है, धर्म काम्य दे नमा शीश है। स्वर्ग मोक्ष गति देता धीश है, पूजू हरता मनकी रीश है।। ऊँ ह्रीं "हू'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।39॥
णं-बीजाक्षर जाप जपेंगे, द्वादश गण भी इसे रटेंगे। भव्य जीव जीवन का दाता, भावे अमृत मय यह भाता।। ऊँ ह्रीं ‘‘णं' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।40॥
चत्तारि-मंगलं
च- बीजाक्षर वर्ग का राजा, पंचमि व्रत दायक शिवकाजा। योगीश्वर के मुख से निकला, पूजू अष्ट द्रव्य ले सकला।। ऊँ ह्रीं 'च'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।41॥
त्ता-बीजाक्षर सुख युक्तं, जिन भाषित यह पाप से मुक्तम्।
व्रत शुद्धि कर है नित्यं, पूजू अर्घ चढ़ाकर नित्यम्।। ऊँ ह्रीं “त्ता'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।42॥
रि-बीजाक्षर है कर्म शत्रुहर, दुःख बैरी को है पैना शर।
सुव्रत दाता को मैं बन्दू, गुणसागर को पूजूं बन्दूं।। ऊँ ह्रीं 'रि'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।43॥
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