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जय महा महा कीरति विशाल, जय पंच महा कल्याण माल।।
जय यथाख्यात चारित धरंत, जय महामतिर्महा-नीतिवंत। जय पुंडरीक श्रीवत्स लक्ष, जय नाम पितामह जग प्रत्यक्षा। जय पावन गत त्राता पवित्त, जय स्वयं बुद्ध निरबाध नित्त। जय महा प्रातहारिज सुहाय, जय निराहार निःक्रिय लखाय।। जय जय इत्यादि अनंत नाम, उर धारूं तजि सब जगतकाम। मैं करूं वीनती जोर हाथ, भव तारण तरण निहार नाथ।।
दोहा इह गुण मणिमालं परम रसालं, नमि तिरकालं उर धरई।
करि अर्घ अनूपं जजि शिव भूपं ‘चन्द' अनूपं सुख करई।। ऊँ ह्रीं क्षायक ज्ञान ऋद्धिधारक जिनेभ्यो पूर्णार्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा ज्ञानलब्धि धर जिन तणी, पूजा परम विशाल। द्रव्य भाव से जो करै, पावै शिव पद हाल।।
।।इत्याशीर्वादः॥
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