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धूप खेय धूप दान अग्नि सों जराय है, अष्टकर्म धूप नाश धूम सों उडाय है। जन्म मरणादि क्षयरोग नशि जाय है, सार सौख्य धार पूज ज्ञानरिद्ध पाय है।।
ॐ ह्रीं ज्ञानलब्धिधारक जिनेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।7।
आम्रकाम्र दाडिमादि स्वर्ग भानु लोक के, सार फल सुखकरा धार हेत मोक्ष के। जन्म मरणादि क्षयरोग नशि जाय है, सार सौख्य धार पूज ज्ञानरिद्ध पाय है।।
ॐ ह्रीं ज्ञानलब्धिधारक जिनेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।।8।
अष्ट द्रव्य धार सार अष्ट अंग नाइया। अर्घसों चढाय शीश नाय भक्त भाइया। जन्म मरणादि क्षयरोग नशि जाय है, सार सौख्य धार पूज ज्ञानरिद्ध पाय है।।
ऊँ ह्रीं ज्ञानलब्धिधारक जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।9।
प्रत्येक अर्घ (छंद लक्ष्मीधरा) जीव त्रास थावरा सूक्ष्म अरु वादरा, आयु तिन काय उत्सेध उत्पति धरा।
स्थित्य व्ययात्म के ज्ञायते जे जिना, क्षायकं लब्धिधर पूजिहँ मैं तिना।। ॐ ह्रीं त्रसस्थावर सूक्ष्मबादर जीवानाम् आयुकाशरीरोत्सेधस्थिति उत्पत्तिज्ञायकभावेभ्यो अर्घ
___ निर्वपामीति स्वाहा।।1॥
व्योमधर्माधरम काल अरु पुद्गला, पंच निरजीव के भेद जानो भला।
तास के रूप की ज्ञायकं लब्धि है, पूजिहँ ते जिना धार गुण अब्धि है।। ऊँ ह्रीं धर्माधर्माकाशपुद्गलादीनां पंचप्रकार अजीवपदार्थ स्वरूपानां ज्ञायकभावेभ्योप्राप्तेभ्यो
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
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