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वीर्य लब्धि पूजा (दोहा) वीर्य अनन्तजु धारियो, अंतराय कर अंत। आह्वानन विधि ठानिके, स्थापि जजू अरहंत।।
ऊँ ह्रीं वीर्यलब्धिधारकजिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अष्टक (जोगीरासा) हेमाचल निर्गत सरिता जल कंचन कुम्भ भराई।
जनमजरामृत नाशन कारण धार देत हरषाई।। वीर्य लब्धिधारक जिन स्वामी सुर नर पूजै पाई।
पूजू मन वच शीश नाय निज वीर्य लब्धिबकसाई।। ऊँ ह्रीं वीर्यलब्धिधारक जिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
मलयागिरि चन्दन कुंकुम संग ले घसि करपूर मिलाई।
भव आताप नाश करने को तुम पद भेट चढाई।। वीर्य लब्धिधारक जिन स्वामी सुर नर पूजै पाई।
पूजू मन वच शीश नाय निज वीर्य लब्धिबकसाई।। ऊँ ह्रीं वीर्यलब्धिधारक जिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
खंड विवर्जित निशिपति तर्जित, तंदुल शुद्ध मंगाई। शिव थल कारण कर्म निवारण पुंज धरूं गुण गाई।।
वीर्य लब्धिधारक जिन स्वामी सुर नर पूजै पाई।
पूजू मन वच शीश नाय निज वीर्य लब्धिबकसाई।। ऊँ ह्रीं वीर्यलब्धिधारक जिनेभ्यो अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा।3।।
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