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तत् स्वरूप उपभोग धार जिन, पूजू ध्यान लगाई।। ऊँ ह्रीं अयोगगुणस्थाने व्युपरतक्रियानिवर्तिनाम शुक्ल ध्यान उपभोगलब्धि प्राप्ताय अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
जयमाला (दोहा) ध्यान कृपाण सु धारिके, मोहमल्लजिन मार। गुण अनंत युत द्वे रहे, नमू लाहि उर धार।।
(दन्द मोतिया दाम) नमो जिनदेव करे सुर सेव, नमो पद तोहि टरे अघटेव। नमो मिथ्यातम नाशनभान, नमो शिवरूप सदा अमलान।। नमैं मुनिराय सदा गुण गाय, लहै तब मोख रमा शिव जाय। धरे तुम पंच कल्याण अनूप, सुतत्वप्रकाशन शुद्धस्वरूप।। तुही भव वारिधि तार तरंड, अबंध कषाय अरूप अखंड। विकार विवर्जित तर्जित काम, रमा शिवसंग बसे शिवधाम।
नहीं गुण अन्त लहे श्रुतवंत, कहां हम अल्पमती वरनंत। अहो जिनराज दयाउर धार, हरो दुख “चन्द'' करो भवपार।।
(धत्ता)
जय जय जगनामी, त्रिभुवनस्वामी, शक्रनमामि तुवचरणन।
मैं पूजन आयो, अर्घ चढायो, शीश नमायो हर मरणम्।। ऊँ ह्रीं उपभोगलब्धि धारक जिनेभ्यो पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा शुद्ध द्रव्य शुभ भावतें, पूजा करें जो जीव। निश्चय सुर पद पायके, होवे शिव तिय पीव।। ॥ इत्याशीर्वादः॥
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